ग़ज़ल
कोई खुदा से मांग ले दो लम्हे
और मुझे ला कर दे दे दो लम्हे
नफरतों के क़ाबिल हूँ तस्लीम है
एक बार दे यार प्यार के दो लम्हे
जज़्बात का कोई हुनरमंद नहीं हूँ
तक़लीफ़दे हैं हकीकत के दो लम्हे
उम्मीद से ना देख यूँ उस चाँद को
अकेले ही जी के देख ये दो लम्हे
हसीं हो यक़ीनन पहुँच से दूर भी
जनाब देखने दो दूर ही से दो लम्हे-