ग़ज़ल
जब शाहीन बाग़ में गुज़ारी हमने रात थी
एक अजीब एहसास से हुई मुलाक़ात थी
मत पूछ क्या क्या देखा हमारी नज़रों ने
बस यूं समझ कि बिन बादल बरसात थी
बड़ा ही सुकून मिला जब मिला दिल उनसे
दरम्यां हमारे कोई शह न कोई मात थी
जीती थी हमने हारी हुई सारी बाज़ी भी तब
जब मोहब्बत ही इकलौती मेरी ज़ात थी
अब तो कहता है बाग़बान भी उस बाग का
‘कौशिक’ तेरी बातों में अलग ही एक बात थी
:- आलोक कौशिक
संक्षिप्त परिचय:-
नाम- आलोक कौशिक
शिक्षा- स्नातकोत्तर (अंग्रेजी साहित्य)
पेशा- पत्रकारिता एवं स्वतंत्र लेखन
साहित्यिक कृतियां- प्रमुख राष्ट्रीय समाचारपत्रों एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में दर्जनों रचनाएं प्रकाशित
पता:- मनीषा मैन्शन, जिला- बेगूसराय, राज्य- बिहार, 851101,
अणुडाक- devraajkaushik1989@gmail.com