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9 Jan 2020 · 1 min read

ग़ज़ल

मानव ही मानवता को शर्मसार करता है
सांप डसने से क्या कभी इंकार करता है

उसको भी सज़ा दो गुनहगार तो वह भी है
जो ज़ुबां और आंखों से बलात्कार करता है

तू ग़ैर है मत देख मेरी बर्बादी के सपने
ऐसा काम सिर्फ़ मेरा रिश्तेदार करता है

देखकर जो नज़रें चुराता था कल तलक
वो भी छुपकर आज मेरा दीदार करता है

दे जाता है दर्द इस दिल को अक़्सर वही
अपना मान जिसपर ऐतबार करता है

मुझको मिटाना तो चाहता है मेरा दुश्मन
लेकिन मेरी ग़ज़लों से वो प्यार करता है

:- आलोक कौशिक

संक्षिप्त परिचय:-

नाम- आलोक कौशिक
शिक्षा- स्नातकोत्तर (अंग्रेजी साहित्य)
पेशा- पत्रकारिता एवं स्वतंत्र लेखन
साहित्यिक कृतियां- प्रमुख राष्ट्रीय समाचारपत्रों एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में दर्जनों रचनाएं प्रकाशित
पता:- मनीषा मैन्शन, जिला- बेगूसराय, राज्य- बिहार, 851101,
अणुडाक- devraajkaushik1989@gmail.com

3 Likes · 2 Comments · 265 Views
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