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4 Jan 2020 · 1 min read

ग़ज़ल

शेरनी भी पीछे हट गयी
बछड़े की मां जब डट गयी

हमारी कलम वो खरीद न सके
लेकिन स्याही उनसे पट गयी

हमारे मुंह खोलने से पहले
दांतों से जीभ ही कट गयी

सच बोलने लगा है अब वो
समझो उमर उसकी घट गयी

गौर से देखो मेरे माथे को
बदनसीबी कैसे सट गयी

कमीज तो सिला ली हमने
लेकिन अब पतलून फट गयी

उसने गले से लगाया ही था
कमबख़्त नींद ही उचट गयी

………………..

:- आलोक कौशिक

संक्षिप्त परिचय:-

नाम- आलोक कौशिक
शिक्षा- स्नातकोत्तर (अंग्रेजी साहित्य)
पेशा- पत्रकारिता एवं स्वतंत्र लेखन
साहित्यिक कृतियां- प्रमुख राष्ट्रीय समाचारपत्रों एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में दर्जनों रचनाएं प्रकाशित
पता:- मनीषा मैन्शन, जिला- बेगूसराय, राज्य- बिहार, 851101,
अणुडाक- devraajkaushik1989@gmail.com

2 Likes · 232 Views
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