ग़ज़ल
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फ़लक से पुकारे ये हमको नज़ारे
वो नज़रो से करते है हमको इशारे
उठा आज सीने में तूफाँ हमारे
निग़ाहों से कोई नज़र तो उतारे
ख़ता दिल की जो हो बताओ ज़रा तुम
नज़र से किए है जो तुमने नज़ारे
ज़माने ने हमको भी बिखरा दिया है
गली में तुम्हारे समय हम गुज़ारे
समय जब यों आया मुलाक़ात का तो
फ़लक से गए वो किनारे किनारे
गिला कुछ नही है मिला कुछ नही है
ऐसे ज़िंदगी से हम जीते जी हारे
महक़ ज़िंदगी में है आने से उसके
कभी नाम लेके वो मुझको पुकारे
जगाई है हमने भी चाहत दिलो में
मग़र शर्त ये है कि दिल से पुकारे
ज़रा तू फ़लक से नज़र भी हटाले
ज़मी में बहुत से है रहते सितारे
-आकिब जावेद