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11 Oct 2019 · 1 min read

ग़ज़ल

122 122 122 122

फ़लक से पुकारे ये हमको नज़ारे
वो नज़रो से करते है हमको इशारे

उठा आज सीने में तूफाँ हमारे
निग़ाहों से कोई नज़र तो उतारे

ख़ता दिल की जो हो बताओ ज़रा तुम
नज़र से किए है जो तुमने नज़ारे

ज़माने ने हमको भी बिखरा दिया है
गली में तुम्हारे समय हम गुज़ारे

समय जब यों आया मुलाक़ात का तो
फ़लक से गए वो किनारे किनारे

गिला कुछ नही है मिला कुछ नही है
ऐसे ज़िंदगी से हम जीते जी हारे

महक़ ज़िंदगी में है आने से उसके
कभी नाम लेके वो मुझको पुकारे

जगाई है हमने भी चाहत दिलो में
मग़र शर्त ये है कि दिल से पुकारे

ज़रा तू फ़लक से नज़र भी हटाले
ज़मी में बहुत से है रहते सितारे

-आकिब जावेद

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