ग़ज़ल
ग़ज़ल
रंजिशें यार जरा , दिल से भुला कर देखो !
हाथ दुश्मन से भी , इक बार मिला कर देखो !
दोस्ती , प्यार ,वफा , अब न मिलेंगे तुम को ,
ये फसल अब तो नहीं उगती, उगा कर देखो !
चाहतें हैं जो अधूरी , वो भी होँगी पूरी ,
सोच बदलो , कभी कुछ काम नया कर देखो !
जिन्दगी फूल दे या शूल दे , उसकी मर्जी,
राह के शूल जरा खुद ही , हटा कर देखो !
होश से काम ले , यूँ जोश ना जाया कर ,
आग से आग नहीं बुझती, बुझा कर देखो !
रात के खोफ को, चाहो तो मिटा सकते हो ,
दीप इक प्यार का , राहों में जगा कर देखो !
जंग से कब मिले हासिल किन्ही हालातों के ,
बात से बात बनेगी , जो बना कर देखो !
आइना देख रहा है न छिपाओ खुद को ,
खुद की नजरों में न खुद को ही गिरा कर देखो !
वकत के साथ “कुरलिया “ न बदला बिलकुल ,
है वही ढंग ,वही रंग , लो आकर देखो !
@ संजीव कुरलिया