ग़ज़ल
आज बैठा हूँ पकाने रिश्तों की मीठी ग़ज़ल।
रूह को तस्कीन देने वाली इक प्यारी ग़ज़ल।
माँ की ममता और इसमें है पिता का प्यार भी।
माँ पिता के लाड़ बिन बेस्वाद सी बनती ग़ज़ल।
भाई बहनों की लड़ाई में ही उनका प्यार है।
प्यार वाली इस लड़ाई से महकती सी ग़ज़ल।
एक चुटकी दोस्ती का रंग इसमें जब मिला।
तब बनी बेरंग से ये सात रंगों की ग़जल।
नुस्खें हौले हौले से रिश्तों के जब मिलने लगे।
धीमी धीमी आंच पर पकने लगी मेरी ग़ज़ल।