ग़ज़ल
बात जमा माड़ी थी या, तन्नै क्यूकर समझी कोन्या रै
कितनी ए तगड़ी हो लड़ाई, यारी तै तगड़ी कोन्या रै
न्यू लोग भतेरे मिल ज्यांगे, अर दोस्त भतेरे बण ज्यांगे
पर अपणी तास्सां आली महफ़िल, फेर न्यू जमणी कोन्या रै
भीतां परकै कूद क आंदे, रहड़ू मैं खेतां मैं जांदे
इब कारां मैं हांड क देख्या, वा बात तो बणती कोन्या रै
बैठक के मूड्ढ़े आला स्वाद, सोफ्याँ मैं इब आता कोन्या
हुक्के का भी तोड़ कोए ना, सिगरेट तै जमती कोन्या रै
लांबी चोटी, कुड़ता – चुंदड़ी, अर सर पै थी बंटा टोकणी
मेम शहर की किमैं करले, अपणी संतो बरगी कोन्या रै
रोज़ उलाहणे ल्याया करते,बाब्बू की चप्पल खाया करते
म्हारी ख़ातर सारे गाम म, माँ किस गेल झगड़ी कोन्या रै
यार कदे तो फेट ले आकै, इन यादां नै कित धर रया सै
टेम भतेरा जा लिया पर, इबै साँसां तै बिगड़ी कोन्या रै
सुरेखा कादियान ‘सृजना’
4-07-2019