ग़ज़ल
क्या सुनाऊँ वक़्त ने मुझसे कहा जो
हर सितम हर वक़्त अपनों का सहा जो
बंद दरिया का मचलना हो गया क्यों
पूछता वह मौज में सब दिन बहा जो
अब समंदर चीखता है रोज लेकिन
क्यों सुने वो आग को भड़का रहा जो
वर्ष भर अब धूल की बरसात होगी
खंडहर बरसों पुराना है ढहा जो
चोरियाँ कुछ आज रुकनी चाहिए थीं
चोर ही अब कोतवाली कर रहा जो
इश्क का जादू ‘अमर’ अब चल चुका है
ये ग़ज़ल सब कह रही दिल ने कहा जो