ग़ज़ल
ख्वाब को जागकर तो कभी देखिये,
जीत को हारकर तो कभी देखिये|
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दौलतें मांगते हैं सभी रातदिन ,
कुछ क्षमा मांगकर तो कभी देखिये |
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लालसा की यहाँ पर उगी झाड़ियाँ
ये फसल काटकर तो कभी देखिये
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बात सारी खरी हो जरूरी नहीं ,
बात को तोलकर तो कभी देखिये |
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रोज ही ढूंढते सब ख़ुशी की घड़ी,
बेखुदी ढूंढ़कर तो कभी देखिये|
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रामकिशोर उपाध्याय