ग़ज़ल
जान लो पत्थर में’ होती जान है
कंकड़ों में दीखते भगवान है |
ईँट पत्थर जोड़कर बनता भवन
जिंदगी में आदमी सामान है |
हो गया पत्थर सभी मानव यहाँ
आदमी में अब कहाँ ईमान है ?
कोशिशें करते रहे इंसान हों
जिंदगी शैतान की आसान है |
है पृथक खाद्य पहनावा सभी
भिन्नता में एकता पहचान है |
निर्धनों का बंद हो अब माँगना
आश्रमों का हो सहारा, मान है |
गर्व हमको है हमारे देश पर
यह तिरंगा ही हमारी शान है |
कालीपद ‘प्रसद’