ग़ज़ल
पकड़ के रखना कस के यारो, आस और विश्वाश.
कुछ भी कर देने से पहले, कर लो पूर्वाभ्यास.
भ्रम मत पालो एक न होंगे,धरा-गगन सदियों तक,
दशा बनालो खुद हो जावे, खुद का पूर्वाभास.
खुद के ही हाथों में अपने, रुदन – तड़प- अवसाद,
इसी लिए क्यूँ रहे न लब पर, हर पल ही मधुमास.
जीवन संघर्षों का एक पुलिंदा है, तन्द्रुस्त दोस्तों,
फिर क्यूँ न हम हँसें -हँसाएँ, क्यूँ हम रहें उदास.
चारों ओर घने कोहरे को, हमें काटना ही होगा,
बाधा-उलझन दूर रहेंगी,आजाएगा स्वयं प्रकाश.
खुदके बारे खुद निर्णय, लेने की आदत छोडो.
कर्म ‘सहज’ जिसके गुण,गायें धरती और आकाश.
@डॉ.रघुनाथमिश्र ‘सहज’
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