ग़ज़ल ..”ज़िंदगी तुझे गुरूर क्यों है..”
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ज़िंदगी तुझे गुरूर क्यों है
ये शराब सा शुरुर क्यों है
पल पल टूटा बिखरा बिखरा
वक़्त सितमगर मगरूर क्यों है
हाँ… डरा हुआ ज़रूर हूँ मैं
घाव ये तेरा नासूर क्यों है
मौत है नयी अनंत यात्रा
भेजने मुझे आतुर क्यों है
नफ़रत हुई जिसको मुझसे
आदमी बता फितूर क्यों है
सम्हला न हो हताश बंटी
आँधियाँ इत्ती ज़रूर क्यों है
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रजिंदर सिंह छाबड़ा