ग़ज़ल/ ज़ख्म सीना सीख लो
बून्द बून्द करके पानी पीना सीख लो
अरे! मरने से पहले ज़रा जीना सीख लो
यहाँ तो काफ़िरों के दुश्मन ही दुश्मन हैं
मेरे दोस्त मन्दिर-मस्ज़िद मदीना सीख लो
हर मज़हब के हैं अपने अपने सफ़ीने देखों
खरीद लाओ तुम भी दु चार सफ़ीना सीख लो
ये रसीले फलों वाले दरख़्तों की बस्ती है
थोड़े मीठे हो जाओ यार रस पीना सीख लो
सब खींचते हैं ज़ालिम यहाँ ज़ख्मों के धागे
है मशवरा एहतियातन ज़ख्म सीना सीख लो
__अजय “अग्यार