ग़ज़ल/ख़ुदाया सबकी बात करता है।
बिन बादल सहरा में भी बरसात करता है
कोई तो है जो रात को दिन,दिन को रात करता है
उसके इशारे पे क्या नहीं हो सकता यारों
वो ख़ुदा है मौला है ,लाशों को भी हयात करता है
सारा ज़माना मुफ़लिसों से परहेज़ रखता है
पर उसके लिए सब एक हैं,वो सबकी बात करता है
ये सरहदें, जातियों के मेलें लगाए हैं किसने
उसने तो इंसां बनाएं ,वो इंसानों की जमात करता है
मुझें ख़लिश है ,ऐ परवरदिगार फ़कत इक़ ही
मेरे वतन में ही क्यूं कोई, जात-पात हालात करता है
~~अजय “अग्यार