ग़ज़ल- क़द नापिये न आप मेरा आसमान हूँ…
क़द नापिये न आप मेरा आसमान हूँ।
दुनिया की हर बला का मैं ही इक़ निदान हूँ।।
अस्तित्व में सिफ़र हूँ, ज़माना ये मानता।
मत शून्य मुझको समझो , मैं सारा ज़हान हूँ।।
गुरुग्रंथ की हूँ वाणी मैं उपदेश बुद्ध का।
हूँ आयत-ए-कुरान तो गीता का ज्ञान हूँ।।
अदना सा आदमी न समझना मुझे कभी।
क़दमों से दुनिया नाप लूं वामन समान हूँ।।
बंधन न सरहदों का, न मजहब कोई मेरा
अम्मा की गोद भी हूँ, तो मैं ही मसान हूँ।।
मैं अनादिकाल से अविचल अडिग खड़ा।
दुनिया को फ़क्र जिसपे वो शिक्षक महान हूँ।।
निरन्तर…
✍?अरविंद राजपूत ‘कल्प’
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