ग़ज़ल- हुआ मददा बहुत व्यापार साहब।
हुआ मद्दा बहुत व्यापार साहब।
नये आये हैं थानेदार साहब।।
ख़बर सूबों में फैला दीजिएगा।
बड़े सच्चे हैं सूबेदार साहब।।
बपौती नौकरी अपनी समझते।
बने अनपढ़ भी दावेदार साहब।।
खबर उनको नही अब मुफ़लिसों की।
हुए जबसे सियासतदार साहब।।
सियासत हो मुबारक ‘कल्प’ उनको।
भुला नफ़रत करें हम प्यार साहब।।
अरविंद राजपूत ‘कल्प’
बह्र:- मुसद्द्स मक़सूर महज़ूफ़
अरकान:- मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
1222 1222 122.