ग़ज़ल/हाय ! तन्हाई हाय !
वक़्त बे वक़्त ज़ुबाँ से तरानें निकले हैं
कभी फुरक़त कभी उल्फ़त के बहाने निकले हैं
भर आयी फ़िर ये आँखें ,चाँद को देखकर
कह रही सिसक सिसककर ,वो बेगाने निकले हैं
इन अश्क़ों की वजहा कुछ औऱ नहीं
साक़ी तेरे कुछ ख़त मेरे सिरहाने निकले हैं
जब जब मैंने तेरी यादों की गठरी खोली
उसमें कुछ फ़साने ,कुछ दर्द पुराने निकले हैं
मैं कैसे छुपाऊं दर्द ग़म ,कैसे बयाँ करूँ
मुझसे होकर कितनें बे दर्द ज़माने निकले हैं
ना जानें कब से भूखें-प्यासे थे कुछ लम्हें
मुझसे इनकी भूख मिटे, मुझें ये खाने निकले हैं
हाय ! तन्हाई हाय ! तू शोला है तू अंगारा
तेरी आँच में फ़िर से हम दिल जलाने निकले हैं
__अजय “अग्यार