ग़ज़ल- अब अमन लाकर रहूँगा
हर तरफ दहशत का आलम है मचा कुहराम है ।
आबरू नारी की लुटती, रोज कत्लेआम है।।
शेर बब्बर है ये सेना दुश्मनों के सामने।
पर सियासी रहनुमाओं से ही तो नाकाम है।।
घोलते हैं नफरतों का ज़ह्र वो तो देश में।
प्यार औ चैनो-अमन अब, चाहती आवाम है।।
आइए मिल कर करें हम, नाम रोशन देश का।
भाईचारा एकता का बाँट दें पैग़ाम है।।
अब अमन लाकर रहूँगा, ये मेरा वादा रहा।
हूँ अटल वादे पे अपने, ‘कल्प’ मेरा नाम है।।
✍? अरविंद राजपूत ‘ कल्प’
बह्रे-रमल मुसम्मन महजूफ़
अर्कान- फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
वज़्न- 2122 2122 2122 212