ग़ज़ल- समझो हमको शूल हैं हम…
समझो हमको शूल हैं हम।
इस गुलशन के फूल हैं हम।।
मज़हब जाति में मत बांटो।
भारत के अनुकूल हैं हम।।
प्यार मोहब्बत भूल गये।
लड़ने में मशगूल हैं हम।।
मातृभूमि में जड़ें हमारी।
देश बिना निर्मूल हैं हम।।
ऐसे न ठुकराओ हाकिम।
हर दिल को मकबूल हैं हम।।
“कल्प” इसी में मिल जायेंगे।
इस माटी की धूल हैं हम। ।
✍? अरविंद राजपूत कल्प