ग़ज़ल:- सदे अल्फ़ाज़ जब बह्रों में सज श्रृंगार करते हैं…
सदे अल्फ़ाज़ जब बह्रों में सज श्रृंगार करते हैं।
सुखन के क़ायदे ही तो ग़ज़ल तैयार करते हैं।।
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बिना वज़्नों के ये अरकान भी दम तोडते अक़्सर।
हैं कितने ना-सुख़न वो लोग इस पर वार करते हैं।।
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है लहजे में ग़ज़ब की नाज़ुकी खुशबू है फूलों की।
यही अश्आर ही तो बज़्म को गुलजार करते हैं।।
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कभी आवाम पर ज़ुल्मों सितम हद से गुज़र जायें।
सुख़नवर फिर सुख़न अपने से भी यलगार करते हैं।।
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बख़ूबी खूबसूरत सी अदाएँ हार जब जाएं।
रिझाने दिलरुबा को शायरी गुफ्तार करते हैं।।
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ग़ज़ल है दर्द आशिक़ का, ग़ज़ल सम्वेदना दिल की।
ग़ज़ल एहसास प्रीतम का, जिसे हम प्यार करते हैं।।
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अदब की सीख ये देती, सुख़न की राह दिखलाती।
ग़ज़ल तहज़ीब से ही ‘कल्प’ अब इज़हार करते हैं।।
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अरविंद राजपूत ‘कल्प’