ग़ज़ल- शादमानी के लिए अब इक़ दीवानी चाहिए…
जिसमें हो रूहानियत ऐसी कहानी चाहिए।
शादमानी के लिए अब इक़ दीवानी चाहिए।।
प्यार करने, के लिये फिर से ज़वानी चाहिए।
रात हो गुलज़ार ख़ुशबू रात-रानी चाहिए।
मौज़-ए-रानाई फरिश़्ता ख़ूबसूरत ज़िस्म हो।
आसमानी हो परी पर ख़ानदानी चाहिए।।
ले निशानी प्यार की घूमा किये दिन रात हम।
दिन कटे यादों में उसकी रातें सुहानी चाहिए।।
मेहमां दिल का बना कर बंद दरबाजा टरे।
दिल-सितानी माशूका की मेजबानी चाहिए।।
ताजबर मैं हूँ नही पर, हुस्न की मलिका मिले।
कर सकूँ मैं राज जिसपर राजधानी चाहिए।।
कर सके महसूस मेरे भाव भी वो पढ़ सके।
बेझिझक इज़हार करदे ख़ुश-जुबानी चाहिए।।
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’
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