ग़ज़ल:- वो समझते नहीं, या समझदार हैं
वो समझते नहीं, या समझदार हैं।
मुक्त पंछी हैं वो, हम गिरफ्तार हैं।।
मर रहे प्यार में, मिट गये प्यार में।
ख़ुद को भूले हैं हम, वो ख़बरदार हैं।।
प्यार देना ही है, हमने सब कुछ दिया।
चाह लेना तेरा, हम गुनाहगार हैं।।
चाहतों से मेरी, खेलते वो रहे।
हम समझते रहे, वो तलबगार हैं।।
प्यार व्यापार है, उनकी नज़रों में बस।
घाटा सह कर हुए, हम गुनहगार हैं।।
छोड़िये खेलना, ‘कल्प’ दिल से सनम।
बख़्श दो अब हमें, हम मरनहार हैं।।
✍?? अरविंद राजपूत ‘कल्प’ ?✍?
बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन सालिम
अरकान – फाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन
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