ग़ज़ल ~लुटा के दिलों जाँ
ग़ज़ल
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लुटा के दिलो जाँ, खुशियां जहाँ की उन पर अब हम क्या करे
कतरा भी मोहब्बत का वो , हम पर न लुटाए तो हम क्या करे |
जला दिया लो फिर से चराग-ए-उम्मीद, उनके इंतज़ार में हमने
शांय शांय रातें गुज़र गई, वो फिर भी न आये तो हम क्या करे |
गुज़ार दिया खुद को पाक मोहब्बत के, हरेक इम्तेहान से हमने
क्यूँ मोहब्बत का यकीं , उन्हें फिर भी न आए तो हम क्या करे |
लहू के अश्को से भिगो दिया अब दामन, उनकी बेरुखी पे हमने
पत्थर सा दिल उनका फिर भी, न पिघल पाएं तो हम क्या करे |
ज़िंदगी का हर लम्हा लो लिख दिया हैं, अब नाम उनके हमने
एक लम्हें का साथ भी हमारे, नसीब में न आएं तो हम क्या करे |
तस्वीर है जिस दिल में उनकी, रख दिया खोल के सामने हमने
वो इज़हार-ए-मोहब्बत की ज़हमत, न उठायें तो हम क्या करे |
दिल हमारा, मोहब्बत हमारी, सज़ा-ए-मौत भी की कबूल हमने
रहमत एक गुलाब की’अंकनी’ के हक में न आएं तो हम क्या करे |
डॉ. किरण पांचाल (अंकनी)