ग़ज़ल:- रेत पे खींची हुई लक़ीर नही हूँ
रेत पे खींची हुई लक़ीर नही हूँ।
पानी मे घुल जाए ऐसा शीर नही हूँ।।
दे रहा पैग़ाम यार चैन-ओ-अमन का।
प्यार का आज़म हूँ मैं हक़ीर नही हूँ।।
क़ैद कफ़स में मुझें न कीजिएगा अब।
मुक्त परिंदा हूँ मैं असीर नही हूँ।।
आप मुझे आजमा लो चाहे कई बार।
चूक हदफ़ जाए ऐसा तीर नही हूँ।।
छोटा क़लमकार हूँ न कोई अरूज़ी।
‘कल्प’ मैं ग़ालिब, बसीर, मीर नही हूँ।।
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’
बह्रे-मुंसरेह मुसम्मन मतवी मंहूर
वज़न- मुफ़ त ए लुन फ़ायलातु मुफ़ त ए लुन फा
2112 2121 2112 2
लक़ीर- लाइन, रेखा/ शीर:- दूध / आजम- मुखिया/
हक़ीर- तुच्छ/ असीर- क़ैदी/ हदफ़- निशाना/
अरूज़ी- व्याकरण विशेषज्ञ