ग़ज़ल- राह-ए-उल्फ़त में चरागों को जलाए रखना
राह-ए-उल्फ़त में चरागों को जलाए रखना।
आस दीदार की तुम दिल में लगाए रखना।।
राम आएंगे कभी प्रेम गली में सबरी।
टोकरी बेरों की अपनी तू सजाये रखना।।
अब भी लुटती है ये अस्मत भरे दरबारों में।
लाज अबला की ये मोहन तू बचाये रखना।।
नाम शहरों का बदलने से नही कुछ होगा।
मुफ़लिसों के भी घरों को तो सजाये रखना।।
इस वतन को तो सजाने में लहू सबने दिया।
रंग ख़ूँ एक इसे एक बनाये रखना।।
चाहता ‘कल्प’ वतन चैनो अमन की दौलत।
दूर नफ़रत से नगर अपना बसाये रखना।।
अरविंद राजपूत ‘कल्प’
बह्रे- रमल मुसम्मन मख़बून महजूफ
अरकान- फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन
2122 1122 1122 22