ग़ज़ल:- राजन
दोस्तो,
एक ताजा ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले,,,,,,,!!!
ग़ज़ल
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इतना भी किस लिऐ तुम्हारा ये ग़रुर राजन,
तख़्त-ओ-ताज से गिराऐगा ये ज़रुर राजन।
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मज़लूमो को अब ओर न सता बस भी कर,
दिल की बस्तियों से इतना न जा दूर राजन।
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लहूलुहान है सड़कें देख गरीब के छालो से,
क्या लाशे कुचलना ही है, तेरा सरुर राजन।
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चमक चेहरे की चीख-चीख के कहे तुम्हारी,
मुफ़लिसी को रोंद के पाया है ये नूर राजन।
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तेरी चौखट पर सिर सब का,बस झुका रहे,
ये मशां जो फ़कत तुम्हारी है मग़रूर राजन।
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सुन इतना भी जुल्म न कर तूं “जैदि” पे कि,
ख़त्म हो जाऐ ये तुम्हारी छवि पुरनूर राजन।
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इता:-इतना
सरुर:- नशां
मुफ़लिसी :- गरीबी
मग़रूर:-अभिमानी
पुरनूर:-चमकदार
शायर:- “जैदि”
एल.सी.जैदिया “जैदि”