ग़ज़ल:- राख को बारूद कर आतिश न कर…
राख को बारूद कर आतिश न कर।
यूँ ज़रा सी बात पर नाज़िश न कर।।
हूॅं अभी मैं पारदर्शक काँच ही।
बन न जाऊॅं आइना पॉलिश न कर।।
अक़्ल का दुश्मन है तो उस शख़्स को।
अब ज़ियादा और भी दानिश न कर।।
सरज़मींने हिंद के हैं लाल हम।
हम अलग होंगे नही साजिश न कर।।
हम नही हरगिज डरेंगे आपसे।
धमकियों की ‘कल्प’ पर बारिश न कर।।
✍?अरविंद राजपूत ‘कल्प’
2122. 2122. 212