ग़ज़ल- ये नज़रें न होती इशारे न होते…
बह्रे- मुतकारिब मुसम्मन सालिम
अर्कान- फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन
ये नज़रें न होती इशारे न होते।
तो रिश्ते हमारे तुम्हारे न होते।।
जो विस्वास होता, हमें बाजुओं पे।
तो हम भी कभी बेसहारे न होते।।
इरादे रहें नेक वादे अटल हो।
भटकते न मंजिल तो हारे न होते।।
हिदायत बुजुर्गों की अनमोल होती।
जो हम सीख लेते ख़सारे न होते।।
अग़र ‘कल्प’ दिल में न होते इरादे।
जमीं पे फ़लक़ के सितारे न होते।।
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’