ग़ज़ल:- ये कैसी हकीकत है
बह्र-अरकान:- फ़ाईलु मुफ़ाईलुन (221 1222)
ये कैसी हकीकत है।
डंडे की हुकूमत है।।
आवाम परेशाँ है।
शासन की ये नैमत है।।
कानून जो ख़ुद तोड़े।
ये कैसी सियासत है।।
घोड़े यहाँ बेबस क्यों।
खच्चर की ही कीमत है।।
कृषक मरे भूखा क्यों।
शासन है या कुदरत है।।
बूढ़ों के करम गंधे।
बच्चों को नसीहत है।।
पग-पग पे झमेले हैं।
रे ‘कल्प’ ग़नीमत है।।
✍?अरविंद राजपूत ‘कल्प’