ग़ज़ल- यादों से हमको अपनी, भुलाने का शुक्रिया
बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
221 2121 1221 212
यादों से हमको अपनी, भुलाने का शुक्रिया।
यूँ उंगलियों पे अपनी, नचाने का शुक्रिया।
पाले थे ख्याब मैंने, कि कुछ कर दिखाऊँगा।
यूँ हसरतों को मेरी, मिटाने का शुक्रिया।।
ख़ुश था मैं अपने आप, फ़िज़ाएं हसीन थीं।
अंजान था गमों से, बताने का शुक्रिया।।
आँखों में बस गये थे, वो सपने जो झूँठ थे।
आँसू में धुल गये हैं, रुलाने का शुक्रिया।।
यूँ रूठना मनाना, है अंदाज़ भी ग़ज़ब।
रूठा था दिल मेरा भी, मनाने का शुक्रिया।।
वो नाज़-ओ-नख़रे तेरे, अदायें नशीली यूँ।
अंदाज़ ऐ कातिलाना, रिझाने का शुक्रिया।।
दुनियाँ में कष्ट भारी, यहाँ रो रहा जहां।
रोते हुए यूँ ‘कल्प’, हँसाने का शुक्रिया।।
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’