ग़ज़ल ..’मै मिलूंगा तुझे…. अज़नबी की तरह..’
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ज़िंदगी में तड़प .. तिश्नगी की तरह
मौत से मिलन हो.. ज़िंदगी की तरह
आएगा ख्वाब फिर से.. यही सोचकर
आँख मूंदी रही…… तीरगी की तरह
ज़िंदगी के किसी मोड़ पर… आदतन
मै मिलूंगा तुझे…. अज़नबी की तरह
बेल सादाब थी….. मौसमी भी हवा
याद आया शख्स वो.. कमी की तरह
बदलती हैं इन दिनों… हरेक फितरत
गिरगिटों की शक्ल.. आदमी की तरह
कुछ अलग किस्म के लोग.. मिलते यहाँ
साथ रहते… …गगन व धरती की तरह
शौक की तरह प्यार करते हैं सनम
दिल दिल्लगी ‘ब’ आवारगी की तरह
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रजिंदर सिंह छाबड़ा