ग़ज़ल/मेरे ख़ुदा ज़माने से डर गए
दिल से वफ़ा की बात ज़ुबाँ पे लाने से डर गए
हमनें जिन्हें अपनाया ,वो हमें अपनाने से डर गए
हमनें गाड़ी हुई थी नज़रें आसमान में,उन्हें देखकर
अरसें गुज़ार दिए मग़र वो ज़मीं पे आने से डर गए
इक इक पन्ना खोल दिया था हमनें अपने ज़िगर का
इक वो हैं कि ,अपने कुछ हालात बताने से डर गए
जिनके घरों में फ़ानूस ही फ़ानूस लटके हुए हैं लोगों
वो मेहरबाँ मेरे घर में इक चराग़ जलाने से डर गए
जब उसने कहा कि अलविदा ,हम तो जीते जी मर गए
वो कुछ तो अदा करते मेरे दोस्त क्यूं हँसाने से डर गए
कुछ तो गुज़री है उनपे कुछ तो राज़ ए मुहब्बत बाक़ी है
ऐसा लगता है कभी कभी कि मेरे ख़ुदा ज़माने से डर गए
जो हर वक़्त मेरे क़रीब थे मुँह मोड़कर जाने किधर गए
मेरी ज़िन्दगी में आने से डर गए ,दिल को समझाने से डर गए
~अजय “अग्यार