ग़ज़ल- मेरे अज़ीज मेरा चीर खींच लेते हैं…
मेरे अज़ीज मेरा चीर खींच लेते हैं।
ज़रा सी बात पे शमशीर खींच लेते हैं।।
दिखावा करते रहे रात भर अकेले में।
भरी सभा में ही तौक़ीर खींच लेते हैं।।
जो साये से मेरे नफ़रत सदा ही करते वो।
दिखावे के लिए तस्वीर खींच लेते हैं।।
समझ नहीं है जिसे अपने और परायों की।
ये लोग नीर से भी शीर खींच लेते हैं।।
दुःखों में याद करूँ तुमको क्या ख़ता मेरी।
तभी तो ‘कल्प’ की वो पीर खींच लेते हैं।।
अरविंद राजपूत ‘कल्प’
1212 1122 1212 22
तौक़ीर – सम्मान, इज्जत,