ग़ज़ल:- मेरी दौलत मेरी शौहरत, रब की ही सौग़ात है
मेरी दौलत मेरी शौहरत, रब की ही सौग़ात है।
कर रहा मेरा ख़ुदा सब, मेरी क्या औकात है।।
हुस्न पर इतना तक्कब़ुर क्यों तुझे ए नाज़नीं।
चार दिन की चाँदनी ऐ, फिर अँधेरी रात है।।
जो मुकर जाए वफा से उनसे क्या उम्मीद हो।
पूँछ टेड़ी जिसकी निकले, कुत्ते की वो जात है।।
वक्त के हाथों में होता है खिलौना आदमी।
बादशाह घिरता है जब, तो देता प्यादा मात है।।
चाँद तारे और ये सूरज, घूमते तेरे लिये।
‘कल्प’ चमके जुगनुओं सा, उसकी क्या औकात है।।
अरविंद राजपूत ‘कल्प’
बहरे रमल मुसम्मन महजूफ
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