ग़ज़ल-मेरा ख़ालिस मेरा हमदम तुझे उस़्ताद मैं मानूँ
बहरे हजज मुसम्मन सलीम
अरकान- मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
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ग़ज़ल तेरी इब़ादत है, तेरी तहरीर आयत है।
ख़ुदा का है करम तुझ पर ख़ुदा की ही इनायत है।।
गज़ब तेरा तसब्बुर है क़लम का है तू बाज़ीगर।
नया है ज़ाविया तेरा नयी तेरी रिवायत है।।
तेरे अल्फ़ाज़ सीने में समा जाते हैं खुशबू से।
है इनमें रंग तितली सा गुलों सी भी नज़ाकत है।।
मेरा ख़ालिस मेरा हमदम, तुझे उस़्ताद मैं मानूँ।
अनीश अब है मेरा यारा, करे मेरी हिमायत है।।
अरूज़ी ‘कल्प’ से कहते, नही है ‘शाह’ का सानी।
रहेगी अब अदब के इस ज़हां में बादशाहत है।।
✍?अरविंद राजपूत ‘कल्प’
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मेरे उस्ताद एवं यार भाई अनीश शाह जी को समर्पित
तहरीर = वाक्य या अनुच्छेद, तसब्बुर= कल्पना
ज़ाविया= दृष्टिकोण, रिवायत= परंपरा,
ख़ालिस= निश्छल मित्र’ हिमायत= तरफदारी,
अदब़= साहित्य या शिष्ट आचरण