ग़ज़ल (मुसलसल):- बनो तुम नेक इंसा जो, सफ़ल हो साधना मेरी।
बह्र- हज़ज मुसम्मन सलीम
अरकान- मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
नज़र तुमको न लग जाये, ख़ुदा से प्रार्थना मेरी।
ख़ुदा रहमत सदा बख़्शे, यही शुभकामना मेरी।।
कलेजे के हो टुकड़े तुम, मेरी आँखों के तारे हो।
बुजुर्गों की क़दर करना, यही है याचना मेरी।।
पकड़ उंगली चलाया है, तुम्हें गोदी खिलाया है।
बनो मेरा सहारा तुम, यही है कामना मेरी।।
फ़लक़ के चाँद तारे हों, जमीं के गुल बहारें हों।
खिलौने सब बने तेरे, यही है कल्पना मेरी।।
पढ़ाना ‘कल्प’ है तुमको, तुम्हे क़ाबिल बनाना है।
बनो तुम नेक इंसा जो, सफ़ल हो साधना मेरी।।
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’