ग़ज़ल/मुझ में शिफ़ा आयी है
तेरे तसव्वुर भर से मुझमें शिफ़ा आयी है
ऐसा लगता है तू सच में जानेजाँ आयी है
अबके उम्रभर के लिए रह जा तू ख़ाब बनके
आ सीने से लगा लूँ तुझें मुझमें अदा आयी है
तुझें लिख लिखके डायरी भर डाली देख ले
हर सफे में बादल से मिलने फ़िज़ा आयी है
ये तूने आख़िर कैसी कैसी रट लगा रक्खी है
तेरे इस चेहरें की रंगत में क्यूं ख़िज़ाँ आयी है
ज़ख्म खाना ही मेरा मुक़द्दर रहा अब तलक
उल्फ़त में मेरे हरेक लम्हें को क़ज़ा आयी है
जानें क्यूं पाक मुहब्बत का जहाज़ डूबता है
जानें क्यूं तू मुहब्बत का जहाज़ डुबा आयी है
~~अजय “अग्यार