ग़ज़ल- मुझे बज़्म में तुम…
ग़ज़ल- मुझे बज़्म में तुम…
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मुझे बज़्म में तुम बुलाते हो साहब,
मगर नाम भी भूल जाते हो साहब।
जो तोड़ा है रिश्ता मुझे भूल जाओ,
मेरा नाम क्यों गुनगुनाते हो साहब?
तुझे चाँद जबसे कहा है तभी से,
मुझे दिन में तारे दिखाते हो साहब।
सितम ही किया तुमने इतना ज़ियादा,
मुझे आज भी याद आते हो साहब।
यूँ मेरी तरह क्या मेरी याद में भी,
कभी आँसुओं से नहाते हो साहब?
जिधर भी मुड़ा मैं गिरा ठेस खा के,
क्यों राहों में पत्थर बिछाते हो साहब?
गिला सिर्फ “आकाश” इस बात का है,
समन्दर के माफ़िक रुलाते हो साहब।
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 19/06/2019