ग़ज़ल- मुझे आजकल नींद आती कहाँ है
ग़ज़ल- मुझे आजकल नींद आती कहाँ है
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मुझे आजकल नींद आती कहाँ है
कि यादों में आ के वो जाती कहाँ है
वो मय सी निगाहें अदाएँ नशीली
है सबकुछ मगर वो पिलाती कहाँ है
उसे चोर साबित करूँ मैं कसम से
पता जो चले दिल छुपाती कहाँ है
नज़ारे बहुत हैं जमाने में लेकिन
वो चेहरे से परदा उठाती कहाँ है
लिखा आँसूओं से जरा चल के देखूँ
वो मेरे ख़तों को जलाती कहाँ है
मैं ‘आकाश’ जिसपे मरे जा रहा हूँ
वो मुझको झलक भी दिखाती कहाँ है
– आकाश महेशपुरी