ग़ज़ल/मुझसे बची-कुची ख़ुदाई ले जा
मेरे यार ये मेरी तन्हाई मेरी अंगड़ाई ले जा
बे नूर हो चली ,ये चश्म-ए-तमाशाई ले जा
सावन होके भी ना दे सका तू बौछार कोई
ले जा तेरी परछाई ,ये अंजुमन आराई ले जा
इस चेहरें की रौनक़ ,तू नहीं तो क्या रौनक़
ये रौनक़ भी ले जा ,तू मेरी ख़ुद आराई ले जा
बना के छोड़ दे आख़िर तू मुझें कोई काफ़िर
बेख़ुदी देकर ,मुझसे बची-कुची ख़ुदाई ले जा
गुल-ए-गुलज़ार में ना बाक़ी रही, कोई ख़ुशबू
गुलों के रंग भी ले जा,महके चमन शैदाई ले जा
हाय ! मेरे दिल की कसक,इन अश्कों का आलम
तुझे तेरा संसार मुबारक़ मेरे कानों से शहनाई ले जा
~~अजय “अग्यार