ग़ज़ल:- मुझको यकीं उस पर बहुत, मेरा सनम बस एक है..
मुझको यकीं उस पर बहुत, मेरा सनम बस एक है।
दुनिया में हैं मज़हब बहुत, मेरा धरम बस एक है।।
ख़तरा नही दुश्मन से अब, ग़द्दार यारों से सदा।
करता मुहब्बत मुझसे वो, मेरा भरम बस एक है।।
सोचा था बस मेरा है वो, दुनिया से क्या है वास्ता।
सचमुच में वो निकला ख़ुदा, नज़रें रहम बस एक है।।
बदलेंगे हम अपने मकां, दुनिया किराये पर चले।
जाना है सबको एक दिन, सबका इरम बस एक है।।
अनदेखा करते ‘कल्प’ क्यों, फ़ितरत न बदलेगी कभी।
सुरताल तो बदले बहुत, उसका रिदम बस एक है।।
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’