ग़ज़ल – मिलन के तराने यूँ हम गुनगुना लें
मिलन के तराने यूँ हम गुनगुना लें।
चलो ज़िंदगी को ग़ज़ल हम बना लें।।
मिलें वो कभी तो गले से लगा लें।
मिलें इस क़दर हम ख़ुदी को मिटा लें।।
ये ज़न्नत नही चाहिए बिन तुम्हारे।
चलो हम ज़हन्नुम को ज़न्नत बना लें।।
अग़र जिंदगी हम न जी पाये मिलकर।
चलो मौत को अब गले हम लगा लें।।
छुपा हम न पाए ज़माने से खुद को।
चलो ज़िदगी साथ मिलकर बिता लें।।
नही ‘कल्प’ बाराती शादी मे कोई।
चलो चांँद सूरज बराती बना ले।।
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’
बह्र:- मुत़कारिब मसम्मन सालिम
वज़्न:- फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
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