ग़ज़ल- महबूब ही ख़ुदा मेरा महबूब बंदगी…..
महबूब ही ख़ुदा मेरा महबूब बंदगी।
महबूब ख़ूबरू मेरा महबूब सादगी।।
महबूब मेरा बन गया पहचान अब मेरी।
तेरे बग़ैर जिंदगी लगती है खस्तगी।।
जुल्मों सितम किये तेरी अस्मत को लूट कर।
महबूब बनके तूने मुझे दी है जिंदगी।।
तुमको रुलाया मैंने बहुत बात बात पर।
पहलू में रोने दे मुझे धुल जाये गंदगी।।
सहरा में खोजता हूँ तुझे दिल से खो दिया।
प्यासी है जिंदगी तू बुझा दे ये तिश्नगी।।
पाकर क़दर न की तुझे मैंने तो खो दिया।
अब ‘कल्प’ खोजता फिरे कैसी दिवानगी।।
अरविंद राजपूत ‘कल्प’
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