ग़ज़ल/बहके बहके से थे
कुछ बहके बहके से थे
उनकी आँखों के मैक़दे में थे
कल रात वो भी कुछ नशे में थे
औऱ हम भी कुछ नशे में थे
मालूम ना था कि वो भी नशीले हैं
हम उन्हें उस हालत में देखके सकते में थे
उनकी वो मयकशी बातें हाय दिलकशी बातें
बड़े गर्मजोश बड़े मदहोश लफ्ज़ उनके सफ़े में थे
आशिक़ी परवान चढ़ी है इस क़दर दीवाने हो गए
हमें अभी भी ख़बर नहीं वो हममें थे कि हम उनमें थे
जो भी था सब कुछ दरमियाँ हाय हम तो जन्नत में थे
आँखें भी शोलें उगल रही थी हमारी, होंठ वहशत में थे
उंगलियाँ रेशम हो थी हमारी काँपने लगी थी इस तरहा
जिस्म सिमटने लगा था उनकी बातों से ख़ुशी के कुँए में थे
हमारे इश्क़ का आलम था कुछ यूँ धुआँ धुआँ सा थे
बीती सर्द रात हम इक रजाई में थे औऱ वो तकिये में थे
हम क्या बयाँ करें किस तरहा पिघला किये रातभर
कितनें अरमां जगे थे हाय बाल बाल बच गए ख़तरे में थे
जाने कैसे कैसे सम्भालकर रक्खा था हमनें कुछ अरमानों को
पर उन्हें ख़ुद में पाकर सुधबुध भूल गए थे इक अजीब से मज़े में थे
~अजय “अग्यार