ग़ज़ल:- बट गया जनगण सियासत के नाम पर
जदीद
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन मस्तफ़इलुन सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में
(2122; 2122; 2212)
बट गया जनगण सियासत के नाम पर।
लुट रही जनता रियायत के नाम पर।।
दिन दहाड़े लुट रहीं हैं बहू- बेटियाँ।
आबरू लुटती मुहब्बत के नाम पर।।
अब बढ़ाने दर्द ए दिल वो बीमार का।
आ गये हैं लो अयादत के नाम पर।।
वोट की खातिर हुये यूं खुदगर्ज वो।
बाँटते हैं दिल निज़ामत के नाम पर।
कर बसूली कर रहे तानाशाही से।
सब्सिटी छीनी इजाफ़त के नाम पर।
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’