ग़ज़ल- न जीवन बचेगा, बचा जो न पानी…
बह्र-मुतक़ारिब मुसम्मन सलीम
अरकान- फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
न जीवन बचेगा, बचा जो न पानी।
वो इंसान भी क्या, न हो जिसमें पानी।।
(पानी-जल। पानी-स्वाभिमान)
चमक तेग की भी पड़ेगी यूँ फ़ीकी।
जो फ़ौलाद पर जब रहेगा न पानी।।
(तेग- तलवार, पानी- ताव)
नहीं कोई कीमत, ही रहती है उसकी।
अगर खो दिया एक गौहर ने पानी।।
(गौहर – मोती, पानी- बरसात)
जवानी नही है, किसी काम की भी।
न जज़्बा हो जिसमें, न हो उसमें पानी।।
(पानी- ताव)
सजाओं में सबसे, बड़ी इक सज़ा है।
नही मौत से कम, सज़ा काला पानी।।
जो इज़्ज़त की रोटी, कमा ‘कल्प’ खाते।
रहे स्वाभिमानी, रहे नूर पानी।।
(पानी- आभा)
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’