ग़ज़ल- नून रोटी रोज़ खाते रहे गये
ग़ज़ल- नून रोटी रोज़ खाते रह गए
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नून-रोटी रोज़ खाते रह गये
पर कलम यूँ ही चलाते रह गये
इससे अच्छा हम चलाते फावड़ा
गीत ग़ज़लें ही बनाते रह गये
तालियों से भूख मिटती है नहीं
मुफ़्त में कविता सुनाते रह गये
सो गये बच्चे बिना खाये मगर
काफ़िया हम तो मिलाते रह गये
चिटकुलों का है ज़माना दोस्तों
ज्ञान की गंगा बहाते रह गये
जिंदगी “आकाश” अक्सर पूछती
क्यूँ बता लिखते व गाते रह गये
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 27/10/2019