ग़ज़ल- धैर्य मेरा खो रहा है
ग़ज़ल- धैर्य मेरा खो रहा है
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धैर्य मेरा खो रहा है
हाय यह क्या हो रहा है
लोग कहते कवि मुझे पर
ज्ञान मेरा सो रहा है
है हँसी में जिंदगानी
किंतु मन यह रो रहा है
सैकड़ों अवसाद कैसे
यह कलेजा ढो रहा है
मन सदा बेचैन होकर
दर्द केवल बो रहा है
कर नहीं पाया भले कुछ
हौसला यूँ तो रहा है
दाग़ गहरे मिट न पाते
वक्त लेकिन धो रहा है
अब नहीं “आकाश” आता
साथ मेरे जो रहा है
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 08/01/2020