#ग़ज़ल:- दे नशा भरपूर मेरी शाइरी…
दे नशा भरपूर मेरी शाइरी।
ग़म से रक्खे दूर मेरी शाइरी।।1
मयकशी भी जब असर करती न हो।
तब करे मख़मूर मेरी शाइरी।।2
फ़लसफ़ा हर शे’र में भरपूर हैं।
है बड़ी गाफ़ूर मेरी शाइरी।।3
रस्म-ए-उल्फ़त भी सुहानी हो गई।
जब बनी दस्तूर मेरी शाइरी।।4
घाव दिल के जो कभी मिटते न थे
भर रही नासूर मेरी शाइरी।।5
मिल रही अब दाद हर इक़ शे’र पर।
अब नहीं रंजूर मेरी शाइरी।6
हर जुबाँ पर शाइरी अब ‘कल्प’ की।
हो रही मशहूर मेरी शाइरी।।7
✍?कल्पारविन्द
मख़मूर- नशे में
गाफ़ूर- दयालु
रंजूर- कमजोर